माँ दुर्गा की उत्पत्ति

त्रिदेवों द्वारा माँ दुर्गा की उत्पत्ति का चित्रण
माँ दुर्गा हिन्दू धर्म में शक्ति की प्रधान देवी हैं। वे बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक हैं। उनकी उत्पत्ति की कहानी अत्यंत प्रेरणादायक और रोचक है।
त्रैलोक्य में आतंक
प्राचीन काल में महिषासुर नामक एक राक्षस था जो बहुत शक्तिशाली हो गया था। उसने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया था कि उसका वध कोई पुरुष नहीं कर सकता। इस वरदान के बल पर वह अत्यंत अहंकारी हो गया और समस्त देवताओं को परास्त करके स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया।
देवताओं ने महिषासुर और उसकी सेना के अत्याचारों से पीड़ित होकर ब्रह्मा जी की शरण ली। ब्रह्मा जी भी देवताओं को लेकर भगवान शिव और विष्णु के पास गए। सभी देवता मिलकर इस संकट के समाधान पर विचार करने लगे।
माँ दुर्गा की उत्पत्ति
सभी देवताओं ने अपना क्रोध एक साथ प्रकट किया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इंद्र और अन्य सभी देवताओं के क्रोध से एक अद्भुत ज्योति प्रकट हुई। यह ज्योति इतनी तेजस्वी थी कि सारा ब्रह्मांड प्रकाशमय हो गया। इस दिव्य ज्योति से एक अतिसुंदर स्त्री रूप प्रकट हुआ, जिसे सभी देवताओं ने अपनी-अपनी शक्ति प्रदान की।
"त्रिलोक से अलग है तेरी सूरत, माँ!
तुम्हीं तो हो प्रकृति, तुम्हीं संहार।
तुम्हीं हो सृष्टि, तुम्हीं पालनहार॥"
देवताओं द्वारा प्रदत्त शक्तियाँ
इस दिव्य देवी को सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र और शक्तियाँ प्रदान कीं:
- शिव जी ने त्रिशूल प्रदान किया
- विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र दिया
- इंद्र ने वज्र और ऐरावत हाथी दिया
- वरुण ने शंख और पाश (पाशा) दिए
- अग्नि ने शक्ति (भाला) दी
- वायु ने धनुष और बाण दिए
- यम ने दंड दिया
- ब्रह्मा ने कमंडल और माला दिए
- सूर्य ने अपनी किरणें दीं
- काल ने खड्ग (तलवार) और ढाल दिए
- कुबेर ने अमृत का कलश दिया
इस प्रकार सभी देवताओं की शक्तियों से सम्पन्न यह देवी "दुर्गा" के नाम से प्रसिद्ध हुईं। "दुर्गा" नाम का अर्थ है "दुर्गम" यानी जिसे पाना कठिन हो।
दुर्गा नाम की व्युत्पत्ति
संस्कृत में "दु" का अर्थ है दुष्ट या बुराई, और "र्गा" का अर्थ है नाश करने वाली। इस प्रकार दुर्गा का अर्थ है "बुराई का नाश करने वाली"। एक अन्य अर्थ के अनुसार, "दुर्ग" का अर्थ है किला या अभेद्य स्थान, और माँ दुर्गा भक्तों के लिए सुरक्षा का अभेद्य किला हैं।
माँ दुर्गा का सिंह वाहन
हिमालय ने माँ दुर्गा को एक शक्तिशाली सिंह वाहन के रूप में भेंट किया। यह सिंह बल और पराक्रम का प्रतीक था। माँ दुर्गा ने इस सिंह को अपना वाहन बनाया और महिषासुर से युद्ध करने के लिए प्रस्थान किया।
उनके घोर नाद से सारा ब्रह्मांड कांप उठा। देवताओं को आशा बंधी कि अब उनका कष्ट दूर होगा। दुष्ट महिषासुर भी माँ दुर्गा के आगमन से भयभीत हो गया।
माँ दुर्गा और महिषासुर का युद्ध
महिषासुर अपनी सेना को लेकर माँ दुर्गा से युद्ध करने के लिए आया। उसने अपने विशाल सेनापतियों को माँ दुर्गा से लड़ने के लिए भेजा, परंतु माँ दुर्गा ने उन सभी को पराजित कर दिया।
अंत में, महिषासुर स्वयं माँ दुर्गा से युद्ध करने के लिए आया। वह अपनी माया से कभी भैंसे के रूप में, कभी सिंह के रूप में, कभी मनुष्य के रूप में और कभी हाथी के रूप में प्रकट होकर माँ दुर्गा से युद्ध करने लगा।
माँ दुर्गा ने अपनी दिव्य शक्ति से महिषासुर के सभी रूपों का सामना किया। अंत में, जब वह पुनः भैंसे के रूप में प्रकट हुआ, तब माँ दुर्गा ने अपने त्रिशूल से उसके वक्षस्थल को भेद दिया और उसका वध कर दिया।
देवताओं का आनंद
महिषासुर के वध से सभी देवता अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने माँ दुर्गा की स्तुति की और पुष्पवर्षा करके उनकी पूजा की। इंद्र ने पुनः अपना स्वर्गलोक प्राप्त किया और सभी देवता अपने-अपने लोकों में प्रतिष्ठित हुए।
तब से माँ दुर्गा "महिषासुरमर्दिनी" के नाम से भी जानी जाती हैं, जिसका अर्थ है "महिषासुर का वध करने वाली"।
माँ दुर्गा के नौ रूप
माँ दुर्गा के नौ रूप हैं, जिन्हें नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है। ये नौ रूप हैं:
- शैलपुत्री - पर्वतराज हिमालय की पुत्री
- ब्रह्मचारिणी - तपस्या और संयम की देवी
- चंद्रघंटा - सुंदरता और शौर्य की देवी
- कूष्मांडा - सृष्टि की उत्पत्ति करने वाली
- स्कंदमाता - कार्तिकेय (स्कंद) की माता
- कात्यायनी - महर्षि कात्यायन की पुत्री रूप
- कालरात्रि - काल का नाश करने वाली
- महागौरी - तपस्या से गौरवर्ण वाली
- सिद्धिदात्री - सभी सिद्धियों की प्रदाता
उपसंहार
माँ दुर्गा की उत्पत्ति की कथा हमें यह शिक्षा देती है कि जब बुराई अत्यधिक बढ़ जाती है, तब ईश्वरीय शक्ति स्वयं प्रकट होकर उसका नाश करती है। माँ दुर्गा शक्ति, साहस और न्याय का प्रतीक हैं। वे अधर्म का नाश करके धर्म की स्थापना करती हैं।
हिन्दू धर्म में दुर्गा पूजा और नवरात्रि जैसे त्योहारों पर माँ दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है। इन नौ दिनों में माँ के नौ रूपों की पूजा की जाती है और भक्त उपवास रखकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
माँ दुर्गा के आशीर्वाद से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में शांति, समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है।
माँ दुर्गा की स्तुति
"या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"
अर्थ: जो देवी सभी प्राणियों में शक्ति के रूप में विराजमान हैं, उन्हें नमस्कार है, उन्हें नमस्कार है, उन्हें बार-बार नमस्कार है।
संबंधित कथाएँ
सांस्कृतिक संदर्भ
दुर्गा पूजा उत्सव
बंगाल, असम, ओडिशा और अन्य पूर्वी राज्यों में दुर्गा पूजा बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। भव्य पंडालों में माँ दुर्गा की मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं और नौ दिनों तक उत्सव चलता है। दसवें दिन विजयादशमी पर माँ दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है।
कला और साहित्य में स्थान
माँ दुर्गा और महिषासुर का युद्ध भारतीय कला और साहित्य का प्रिय विषय रहा है। अनेक मंदिरों, गुफाओं और चित्रों में इस युद्ध का चित्रण मिलता है। मार्कण्डेय पुराण में 'दुर्गा सप्तशती' या 'चण्डी पाठ' में माँ दुर्गा की महिमा का विस्तार से वर्णन है।
आधुनिक संदर्भ
आधुनिक समय में माँ दुर्गा नारी शक्ति का प्रतीक बन गई हैं। अनेक फिल्मों, टीवी सीरियलों और अन्य माध्यमों से माँ दुर्गा की कथा को नई पीढ़ी तक पहुँचाया जा रहा है। माँ दुर्गा की कथा से बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश मिलता है, जो आज के समय में अत्यंत प्रासंगिक है।