वेद भक्तिVeda Bhakti
मुख्य पृष्ठकथाएँहनुमानराम भक्ति
हनुमान कथाएँ

हनुमान की राम भक्ति

10 मिनट पढ़ने में
हनुमान की राम भक्ति

हनुमान जी अपने हृदय में प्रभु राम और माता सीता को धारण करते हुए

हनुमान जी की भक्ति समस्त भक्तों के लिए एक आदर्श है। वे भगवान राम के प्रति अपने समर्पण, निष्ठा और अनन्य प्रेम के लिए जाने जाते हैं।

परिचय

हिन्दू धर्म में हनुमान जी को भक्ति का सर्वोत्तम उदाहरण माना जाता है। उनकी राम भक्ति निःस्वार्थ, अटूट और पूर्ण समर्पण की भावना से परिपूर्ण है। वे भगवान राम के सेवक, भक्त, दूत और अनन्य मित्र के रूप में जाने जाते हैं।

भूलकर भी अभिमान नहीं

हनुमान जी असाधारण शक्ति के स्वामी होने के बावजूद कभी भी अभिमान नहीं करते थे। वे अपनी सारी शक्ति का श्रेय भगवान राम को देते थे और स्वयं को उनका विनम्र सेवक मानते थे। एक बार जब सुग्रीव ने उनकी प्रशंसा की, तो हनुमान ने कहा, "मेरी शक्ति मेरी नहीं, मेरे प्रभु राम की कृपा है।"

हृदय में राम

"जाके हृदय सीता-राम निवासा, ताके भय डरपत काल-पासा।"

हनुमान जी के हृदय में सदैव राम और सीता का वास रहता है। प्रसिद्ध कथा के अनुसार, हनुमान ने अपना वक्ष फाड़कर दिखाया था, जिसमें सीता-राम की छवि अंकित थी। यह उनके प्रति उनकी गहन भक्ति का प्रतीक है। उनके मन, वचन और कर्म सभी में भगवान राम ही थे।

लंका में पराक्रम

लंका में प्रवेश करते समय हनुमान ने भगवान राम के नाम का स्मरण किया और असंभव कार्य को संभव कर दिखाया। उन्होंने अशोक वाटिका में माता सीता को खोजा, रावण के पुत्र अक्षय कुमार का वध किया, और लंका को जलाकर राम का संदेश रावण तक पहुंचाया। इन सभी कार्यों में उनकी प्रेरणा केवल एक थी - राम की सेवा।

संजीवनी बूटी की खोज

युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण मूर्छित हो गए, तब हनुमान ने हिमालय पर्वत से संजीवनी बूटी लाने का अद्भुत कार्य किया। जड़ी-बूटी की पहचान न कर पाने के कारण, उन्होंने पूरा पर्वत ही उठा लिया। इस अद्भुत कार्य में उनकी राम-भक्ति की शक्ति ही थी जो उन्हें इतना बल प्रदान करती थी।

चिरंजीवी हनुमान

कहा जाता है कि रामायण के अंत में जब भगवान राम अपने धाम वापस जा रहे थे, तब हनुमान ने उनसे साथ चलने की इच्छा व्यक्त की। तब राम ने कहा - "हनुमान, यह कलियुग आ रहा है, जिसमें लोग मेरा नाम भूल जाएंगे। तुम धरती पर रहकर मेरे नाम का प्रचार करो।" इस आज्ञा को शिरोधार्य करके हनुमान चिरंजीवी बनकर आज भी कलियुग में राम-भक्ति का संदेश फैला रहे हैं।

हनुमान जी के भक्ति के सिद्धांत

  • निःस्वार्थ सेवा - हनुमान ने कभी भी अपने लिए कुछ नहीं मांगा, उनका सारा जीवन राम की सेवा में समर्पित था।
  • दृढ़ विश्वास - समुद्र लांघने से लेकर लंका दहन तक, हनुमान का राम पर अटूट विश्वास था।
  • समर्पण - "जहाँ राम वहाँ हनुमान" - यह उनके पूर्ण समर्पण का प्रतीक है।
  • विनम्रता - अपार शक्ति के बावजूद हनुमान सदैव विनम्र रहे।
  • अविचल निष्ठा - हनुमान की भक्ति में कभी विचलन नहीं आया, वे हर परिस्थिति में राम के प्रति निष्ठावान रहे।

उपसंहार

हनुमान जी की राम भक्ति हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति में अहंकार का कोई स्थान नहीं होता। वे हमें निःस्वार्थ सेवा, समर्पण और दृढ़ विश्वास का पाठ पढ़ाते हैं। आज भी संकट में फंसे भक्त हनुमान जी का स्मरण करते हैं, और विश्वास है कि वे सदैव भक्तों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं।

साखी:

"राम काज किनहे बिनु मोही। को अस बीर धीर नर सोही॥"

अर्थ: राम के कार्य के बिना मुझे शांति नहीं मिलती। ऐसा कौन वीर और धैर्यवान मनुष्य है जो राम का कार्य न करे।

142 पसंद
28 टिप्पणियाँ
विशेष

संबंधित कथाएँ

अशोक वाटिका

हनुमान द्वारा रावण के अशोक वाटिका में सीता माता की खोज।

8 मिनट
ब्रह्मचर्य व्रत

हनुमान जी के आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत की कहानी।

6 मिनट
हनुमान-भीम भेंट

महाभारत काल में भीम और हनुमान के मिलन की कथा।

9 मिनट

सांस्कृतिक संदर्भ

धार्मिक महत्व

हनुमान की राम भक्ति हिन्दू धर्म में दास्य भक्ति (सेवक के रूप में भक्ति) का सर्वोत्तम उदाहरण मानी जाती है। मंदिरों में हनुमान की मूर्ति अक्सर राम के चरणों में या उनकी सेवा में दिखाई जाती है।

हनुमान चालीसा

तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा में हनुमान की राम भक्ति का विस्तार से वर्णन है। यह पाठ करोड़ों हिन्दुओं द्वारा दैनिक रूप से पढ़ा जाता है और इसे संकट निवारक माना जाता है।

आधुनिक प्रभाव

आज भी हनुमान जी की राम भक्ति युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है। कई आध्यात्मिक गुरु हनुमान के चरित्र से निःस्वार्थ सेवा और समर्पण का पाठ सिखाते हैं। हनुमान जयंती पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जिनमें उनकी राम भक्ति का गुणगान किया जाता है।