वेद भक्तिVeda Bhakti
होम/कथाएँ/शिव/त्रिपुर संहार
शक्ति|पढ़ने का समय: 8 मिनट

त्रिपुर संहार: जब शिव ने एक ही बाण से तीन नगरों का किया विनाश

अत्याचारी असुर त्रिपुरासुर के तीन उड़ने वाले नगरों (त्रिपुर) के विनाश की प्राचीन कथा, जिसमें भगवान शिव ने एक ही बाण से तीनों नगरों का नाश करके देवताओं और मानव जाति की रक्षा की।

त्रिपुर संहार

भगवान शिव द्वारा त्रिपुर का विनाश

त्रिपुरासुर का उदय

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, तारकासुर नामक एक शक्तिशाली असुर के तीन पुत्र थे - तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। ये तीनों भाई अपने पिता की तरह ही महान् शक्तिशाली थे और उन्होंने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की।

ब्रह्मा जी उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्होंने तीनों भाइयों को वरदान मांगने को कहा। तीनों ने मिलकर एक अजीब वरदान मांगा - उन्होंने सोने, चांदी और लोहे के तीन नगर बनाने की शक्ति मांगी, जो आकाश में उड़ सकें और हर एक हजार वर्ष में एक बार एक पंक्ति में आ जाएं। साथ ही, उन्होंने यह भी मांगा कि उनका नाश सिर्फ तभी हो सके जब तीनों नगर एक पंक्ति में हों और एक ही बाण से नष्ट हों।

ब्रह्मा जी ने उन्हें यह वरदान दे दिया। मय दानव, जो एक महान वास्तुकार थे, ने इन तीनों नगरों का निर्माण किया। सोने का नगर स्वर्ग में, चांदी का नगर अंतरिक्ष में और लोहे का नगर पृथ्वी पर स्थित था। इन तीनों नगरों को एक साथ 'त्रिपुर' कहा जाता था।

असुरों का अत्याचार

त्रिपुर में रहने वाले असुर अपनी शक्ति से अत्यंत अहंकारी हो गए। वे देवताओं पर आक्रमण करने लगे और मनुष्यों को भी परेशान करने लगे। उन्होंने यज्ञों में विघ्न डाला और धर्म का मार्ग अवरुद्ध किया।

देवताओं ने इन असुरों के अत्याचारों से पीड़ित होकर ब्रह्मा जी से सहायता मांगी। ब्रह्मा ने उन्हें बताया कि त्रिपुर का विनाश केवल एक ही तरीके से संभव है - जब तीनों नगर एक पंक्ति में आ जाएं और एक ही बाण से नष्ट हों।

ब्रह्मा ने आगे कहा कि केवल भगवान शिव ही इतने शक्तिशाली हैं कि वे इस कार्य को पूरा कर सकें। इसलिए, सभी देवता भगवान शिव के पास गए और उनसे सहायता मांगी।

दिव्य रथ और आयुध

त्रिपुर संहार के लिए विश्वकर्मा ने एक विशेष रथ का निर्माण किया। इस रथ के पहिए सूर्य और चंद्रमा थे, सारे ब्रह्माण्ड के अस्त्र-शस्त्र इसके अंग थे, वेद और उपनिषद इसके घोड़े थे, और समुद्र इसका धनुष था। ब्रह्मा स्वयं इस रथ के सारथि बने और शेषनाग इसकी रस्सी बने।

शिव द्वारा त्रिपुर संहार की तैयारी

भगवान शिव ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार की और त्रिपुर का विनाश करने का निर्णय लिया। शिव ने विश्वकर्मा द्वारा निर्मित दिव्य रथ पर सवार होकर, और ब्रह्मा को अपना सारथि बनाकर, त्रिपुर की ओर प्रस्थान किया।

भगवान शिव के हाथ में पिनाका नामक धनुष था, और पशुपतास्त्र नामक एक विशेष बाण था, जिसे ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवताओं ने अपनी-अपनी शक्तियां प्रदान की थीं। इस बाण में अग्नि, वायु, जल और पृथ्वी के तत्व समाहित थे।

शिव ने प्रतीक्षा की, कि कब तीनों नगर एक पंक्ति में आएंगे। हर एक हजार वर्ष बाद, तीनों नगर एक पंक्ति में आते थे, और वह समय केवल एक क्षण के लिए होता था।

सटीक निशाना

जब वह क्षण आया, जब तीनों नगर एक पंक्ति में आ गए, तब ब्रह्मा ने शिव को सूचित किया कि यही वह सही समय है। शिव ने पशुपतास्त्र को अपने धनुष पर चढ़ाया, निशाना साधा और बाण छोड़ दिया।

शिव का बाण इतनी तेजी और सटीकता से चला कि वह तीनों नगरों को भेदता हुआ पार कर गया, और क्षण भर में ही त्रिपुर जलकर नष्ट हो गया। शिव के इस शौर्य से प्रसन्न होकर, देवताओं ने उन्हें 'त्रिपुरारि' - त्रिपुर के शत्रु का उपाधि प्रदान की।

स्मैरहासिक नृत्य

त्रिपुर के विनाश के बाद, भगवान शिव ने प्रसन्नता से 'ताण्डव' नृत्य किया, जिसे 'त्रिपुर ताण्डव' के नाम से जाना जाता है। यह नृत्य उनकी विजय का प्रतीक था, और साथ ही ब्रह्मांड के संतुलन की पुनः स्थापना का भी।

इस घटना के बाद, त्रिपुर के असुरों के अत्याचार से मुक्त होकर, पूरा ब्रह्मांड फिर से शांति और समृद्धि से भर गया। देवताओं ने फिर से अपने स्थान प्राप्त किए, और मनुष्यों ने फिर से धर्म का मार्ग अपनाया।

"त्रिपुर संहार की कथा हमें सिखाती है कि अनैतिकता और अन्याय चाहे कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों, अंततः सत्य और धर्म की ही विजय होती है।"

त्रिपुर संहार का आध्यात्मिक अर्थ

आध्यात्मिक दृष्टि से, त्रिपुर तीन प्रकार के आवरणों या बंधनों का प्रतीक है, जो आत्मा को परमात्मा से अलग करते हैं - अज्ञान (अविद्या), कर्म और इच्छा (काम)। शिव द्वारा त्रिपुर का विनाश, इन तीनों आवरणों को नष्ट करके आत्मा को मुक्त करने का प्रतीक है।

त्रिपुर संहार शिव जी के रौद्र रूप को दर्शाता है, जो बुराई का विनाश करने के लिए आवश्यक है। यह कथा हमें सिखाती है कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए, कभी-कभी हमें अपने भीतर की बुराइयों और नकारात्मक विचारों का विनाश करना पड़ता है।

निष्कर्ष

त्रिपुर संहार की कथा धर्म की अधर्म पर, न्याय की अन्याय पर, और सत्य की असत्य पर विजय का प्रतीक है। यह कथा हमें सिखाती है कि शक्ति का उपयोग सही दिशा में, उचित समय पर, और न्याय के लिए किया जाना चाहिए।

भगवान शिव का त्रिपुरारि रूप हमें यह भी सिखाता है कि हमें अपने जीवन में आने वाली बाधाओं और चुनौतियों का सामना करने के लिए, अपने भीतर की शक्ति और साहस को पहचानना चाहिए। त्रिपुर संहार की कथा, अंततः, आत्म-शोधन और आध्यात्मिक उत्थान का मार्ग दिखाती है।

संबंधित मंदिर

त्रिपुरेश्वर महादेव मंदिर, नेपाल

काठमांडू में स्थित यह प्राचीन मंदिर भगवान शिव को त्रिपुरारि के रूप में समर्पित है। यहां शिव जी की त्रिपुर विजय का उत्सव मनाया जाता है।

त्रिपुरांतक मंदिर, तमिलनाडु

त्रिची के पास स्थित यह मंदिर त्रिपुर संहार के बाद शिव द्वारा किए गए ताण्डव नृत्य को समर्पित है। यहां के शिवलिंग को 'त्रिपुरांतकेश्वर' के नाम से जाना जाता है।

त्रयंबकेश्वर मंदिर, महाराष्ट्र

नासिक के पास स्थित यह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग मंदिर भी त्रिपुर संहार से जुड़ा है। 'त्रयंबक' नाम का अर्थ 'तीन आंखों वाला' होता है, जो शिव के त्रिनेत्र रूप को दर्शाता है।