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रक्तबीज वध

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रक्तबीज वध

रक्तबीज: एक अजेय असुर

प्राचीन काल में, रक्तबीज नामक एक महाबली असुर था, जिसके पास एक अद्भुत वरदान था - उसके शरीर से गिरने वाली रक्त की प्रत्येक बूंद से एक नया रक्तबीज उत्पन्न हो जाता था। इस अजेय शक्ति के कारण, वह देवताओं के लिए भी एक गंभीर चुनौती बन गया था।

रक्तबीज शुंभ और निशुंभ नामक असुर राजाओं का एक प्रमुख सेनापति था। जब शुंभ और निशुंभ ने स्वर्ग पर आक्रमण किया और देवताओं को परास्त कर दिया, तब देवताओं ने अपनी शक्ति एकत्रित करके देवी दुर्गा का आह्वान किया। देवी दुर्गा ने असुरों से युद्ध छेड़ दिया, और एक-एक करके उनके सेनापतियों का संहार करना शुरू कर दिया।

रक्तबीज का आगमन युद्धक्षेत्र में

जब शुंभ के अन्य सेनापति चंड और मुंड परास्त हो गए, तब रक्तबीज को युद्धक्षेत्र में भेजा गया। रक्तबीज अपनी विशाल सेना के साथ देवी दुर्गा के सामने उपस्थित हुआ और घमंड से बोला, "हे देवी! तुम स्त्री होकर युद्ध में उतरी हो। अब तक तुमने मेरे साथी सेनापतियों को केवल इसलिए हरा दिया क्योंकि वे तुम्हारी शक्ति का अनुमान नहीं लगा पाए थे। लेकिन मेरे सामने तुम्हारी सारी शक्ति व्यर्थ है!"

देवी दुर्गा ने मुस्कुराकर कहा, "हे असुर! शब्दों से युद्ध नहीं जीता जाता। अपनी वास्तविक शक्ति दिखाओ।" और इस प्रकार, भयंकर युद्ध आरंभ हुआ।

रक्तबीज की अद्भुत शक्ति

युद्ध में देवी दुर्गा ने अपने विभिन्न हथियारों से रक्तबीज पर प्रहार किया। लेकिन जैसे ही वह घायल होता और उसका रक्त धरती पर गिरता, प्रत्येक रक्त की बूंद से एक नया रक्तबीज उत्पन्न हो जाता था, जो उसी के समान शक्तिशाली और भयंकर होता था।

कुछ ही देर में, युद्धक्षेत्र हजारों रक्तबीजों से भर गया, जो सभी देवी दुर्गा पर आक्रमण करने लगे। यह देखकर देवताओं के मन में भय उत्पन्न हुआ कि कहीं देवी भी इस असुर के सामने परास्त न हो जाएँ।

माँ काली का आह्वान

तब देवी दुर्गा ने अपना मुख उग्र किया और उनके ललाट से भयंकर नीले-काले रंग की देवी प्रकट हुईं, जिन्हें काली या चामुंडा के नाम से जाना जाता है। काली रूप अत्यंत भयावह था - उनके गले में मुंडमाला, हाथों में खप्पर और खड्ग, लाल आँखें और विस्तृत जीभ जो मुख से बाहर निकली हुई थी।

देवी दुर्गा ने माँ काली को आदेश दिया, "हे काली! इस असुर के रक्त की एक भी बूंद धरती पर न गिरने पाए। तुम अपनी विशाल जीभ से उसके रक्त की हर बूंद को पी जाओ, ताकि नए रक्तबीज उत्पन्न न हों।"

रक्तबीज का वध

माँ काली ने युद्धक्षेत्र में अपना भयंकर नृत्य आरंभ किया। जैसे ही देवी दुर्गा रक्तबीज पर प्रहार करतीं, और उसका रक्त बहता, काली अपनी विशाल जीभ से उस रक्त को धरती पर गिरने से पहले ही पी जातीं। इस प्रकार, रक्तबीज की अद्भुत शक्ति निष्प्रभावी हो गई।

धीरे-धीरे, रक्तबीज कमजोर होने लगा, क्योंकि उसका रक्त बह रहा था और कोई नया रक्तबीज उत्पन्न नहीं हो पा रहा था। अंततः, देवी दुर्गा ने अपने त्रिशूल से रक्तबीज का वध कर दिया, और माँ काली ने उसके शरीर से निकली अंतिम रक्त की बूंदों को भी पी लिया।

माँ काली का उन्मत्त नृत्य

रक्तबीज के वध के बाद, माँ काली के उत्साह का ठिकाना न रहा, और वे उन्मत्त होकर नृत्य करने लगीं। उनका नृत्य इतना प्रचंड था कि पूरी पृथ्वी कांपने लगी। सभी प्राणी भयभीत हो गए, और देवता भी चिंतित हो उठे कि कहीं माँ काली के इस प्रचंड रूप से पूरी सृष्टि का विनाश न हो जाए।

तब देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की। शिव, जो काली के पति हैं, युद्धक्षेत्र में पहुँचे और स्वयं को पृथ्वी पर लेट गए। जब माँ काली नृत्य करते हुए उन पर पाँव रख दिया, तो अचानक उन्हें अपनी स्थिति का बोध हुआ। पति को अपने पैरों तले देखकर, वे लज्जित हो गईं और तुरंत शांत हो गईं।

देवताओं की विजय

रक्तबीज के वध के बाद, देवी दुर्गा ने शुंभ और निशुंभ का भी वध किया, जिससे देवताओं को फिर से स्वर्ग मिल गया। देवताओं ने देवी दुर्गा और माँ काली की स्तुति की और उनकी महिमा का गुणगान किया।

इस प्रकार, माँ काली के रूप में स्त्री शक्ति का प्रदर्शन हुआ, जिसने एक ऐसे असुर का वध किया जिसे कोई अन्य हरा नहीं सकता था।

कथा का संदेश

रक्तबीज वध की कथा से हमें कई महत्वपूर्ण संदेश मिलते हैं। सबसे पहले, यह कथा बताती है कि जब अन्य सभी साधन असफल हो जाते हैं, तब माँ काली के रूप में देवी शक्ति प्रकट होती है। उनका रूप भले ही भयावह हो, लेकिन उनका उद्देश्य केवल अधर्म का विनाश और धर्म की स्थापना है।

इस कथा से हमें यह भी सीख मिलती है कि कठिन समस्याओं का समाधान अक्सर नई और अभिनव विधियों से होता है। जैसे माँ काली ने रक्तबीज के रक्त को पीकर उसकी शक्ति को निष्प्रभावी किया, उसी प्रकार हमें भी चुनौतियों का सामना करने के लिए नए दृष्टिकोण अपनाने चाहिए।

अंत में, यह कथा यह भी सिखाती है कि अति का परिणाम हमेशा अच्छा नहीं होता। माँ काली का उन्मत्त नृत्य, यद्यपि विजय का प्रतीक था, फिर भी वह सृष्टि के लिए खतरा बन गया था। विनम्रता और आत्म-नियंत्रण सभी परिस्थितियों में आवश्यक है, भले ही हम विजयी हों।