शुंभ-निशुंभ वध

स्वर्ग पर असुरों का अधिकार
प्राचीन काल में, शुंभ और निशुंभ नामक दो शक्तिशाली असुर भाई थे। अपनी तपस्या के बल पर उन्होंने ब्रह्मा जी से अजेय होने का वरदान प्राप्त कर लिया था। इस शक्ति के मद में, उन्होंने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया और देवताओं को परास्त कर उन्हें स्वर्ग से निष्कासित कर दिया।
देवताओं ने अपने राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिए हर संभव प्रयास किया, लेकिन शुंभ और निशुंभ की शक्ति के आगे वे असहाय थे। असुरों के पास कई शक्तिशाली सेनापति भी थे, जिनमें धूम्रलोचन, चंड, मुंड और रक्तबीज प्रमुख थे। देवताओं की दयनीय स्थिति देखकर भगवान विष्णु और शिव ने उन्हें सलाह दी कि वे माँ आदि शक्ति की शरण में जाएँ।
पर्वतराज हिमालय की कन्या पार्वती
उस समय, पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती तपस्या कर रही थीं। उन्होंने देवताओं के दुःख को सुना और अपनी दिव्य शक्ति से एक अद्भुत नारी का रूप धारण किया, जिसे अम्बिका या चण्डिका के नाम से जाना जाता है। उनका सौंदर्य अवर्णनीय था, उनके मुख से दिव्य प्रकाश निकल रहा था, और उनके शरीर से अलौकिक तेज प्रकट हो रहा था।
सुंदरता का समाचार
शुंभ और निशुंभ के दूत चंड और मुंड जब मार्ग से गुजर रहे थे, तब उन्होंने इस अद्भुत सुंदरी को देखा। वे उसके सौंदर्य से मोहित हो गए और तुरंत अपने स्वामी के पास जाकर उसकी सुंदरता का बखान किया।
"हे स्वामी, हमने एक ऐसी दिव्य सुंदरी को देखा है, जिसकी सुंदरता तीनों लोकों में अद्वितीय है। आपके अतिरिक्त कोई भी उसका पति बनने योग्य नहीं है।" उन्होंने शुंभ को बताया।
शुंभ का प्रस्ताव और देवी का उत्तर
शुंभ ने अपने दूत सुग्रीव को उस सुंदरी के पास प्रस्ताव लेकर भेजा कि वह शुंभ या निशुंभ में से किसी एक को अपना पति चुन ले। देवी अम्बिका ने मुस्कुराकर कहा, "मैंने एक प्रतिज्ञा की है कि मैं केवल उसी से विवाह करूँगी जो मुझे युद्ध में परास्त करेगा। अतः आपके स्वामी को स्वयं आकर युद्ध करना होगा।"
यह सुनकर शुंभ क्रोधित हो गया और उसने अपने सेनापति धूम्रलोचन को देवी को बलपूर्वक लाने का आदेश दिया।
देवी का युद्ध और काली का प्रकटीकरण
जब धूम्रलोचन अपनी विशाल सेना के साथ देवी के पास पहुँचा, तो देवी ने अपनी भृकुटी को तिरछा किया, जिससे उनके ललाट से एक भयंकर काली रूप प्रकट हुआ। काली ने अपने भयानक रूप से धूम्रलोचन और उसकी सेना का संहार कर दिया।
इसके बाद, शुंभ ने अपने दो सेनापति चंड और मुंड को भेजा। देवी दुर्गा के क्रोध से एक बार फिर काली रूप प्रकट हुआ, जिन्होंने अपने भयंकर रूप से चंड और मुंड का वध कर दिया। इसी कारण देवी काली को "चामुंडा" भी कहा जाता है।
रक्तबीज का युद्ध
जब शुंभ को यह पता चला, तो उसने अपने सबसे शक्तिशाली सेनापति रक्तबीज को भेजा। रक्तबीज की एक विशेष शक्ति थी - उसके शरीर से गिरने वाली रक्त की प्रत्येक बूंद से एक नया रक्तबीज उत्पन्न हो जाता था। इस प्रकार, देवी द्वारा उसे घायल करने पर, युद्धक्षेत्र में हजारों रक्तबीज उत्पन्न हो गए।
इस समस्या से निपटने के लिए, देवी दुर्गा ने माँ काली को आदेश दिया कि वे रक्तबीज के रक्त की प्रत्येक बूंद को ज़मीन पर गिरने से पहले ही अपनी लंबी जीभ से चाट लें। माँ काली ने ऐसा ही किया, और देवी दुर्गा ने अपने त्रिशूल से रक्तबीज का वध कर दिया।
शुंभ-निशुंभ से अंतिम युद्ध
अपने सभी सेनापतियों की पराजय के बाद, शुंभ और निशुंभ स्वयं युद्ध के लिए आगे आए। देवी ने अपनी दिव्य शक्ति से अपने विभिन्न रूपों को प्रकट किया - काली, लक्ष्मी, सरस्वती, और अन्य देवियाँ।
भयंकर युद्ध के दौरान, निशुंभ का वध पहले हुआ। उसके मृत्यु के बाद, शुंभ और भी अधिक क्रोधित हो गया और उसने देवी पर जोरदार आक्रमण किया। लेकिन देवी दुर्गा अपनी अद्भुत शक्ति से युद्ध में उससे आगे थीं।
अंततः, देवी ने अपने त्रिशूल से शुंभ का वध कर दिया, जिससे पूरा ब्रह्मांड प्रकाशित हो गया और देवताओं और ऋषियों ने जय-जयकार किया।
देवताओं का स्वर्ग लौटना
शुंभ और निशुंभ के वध के बाद, देवताओं ने अपना खोया हुआ स्वर्ग वापस पा लिया। उन्होंने देवी दुर्गा की स्तुति की और उनकी महिमा का गुणगान किया। देवी ने आशीर्वाद दिया कि जब भी असुर शक्तियाँ उभरेंगी, वे फिर से प्रकट होंगी और अधर्म का नाश करेंगी।
कथा की शिक्षा
शुंभ-निशुंभ वध की कथा हमें सिखाती है कि अहंकार और दुराचार का अंत निश्चित है। यह कथा स्त्री शक्ति और न्याय के महत्व को भी दर्शाती है। माँ दुर्गा का चरित्र हमें बताता है कि जब बुराई अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाती है, तब दैवीय शक्ति अवतरित होकर धर्म की स्थापना करती है।
इस कथा से हमें यह भी सीख मिलती है कि सत्य और धर्म की रक्षा के लिए कठिन परिस्थितियों में भी साहस और दृढ़ता से खड़े रहना चाहिए। माँ दुर्गा की तरह, हमें भी अपने जीवन में अन्याय और अधर्म का विरोध करना चाहिए।
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