वेद भक्तिVeda Bhakti
वीरता|पढ़ने का समय: 8 मिनट

लंका दहन: जब हनुमान ने जलाई थी लंका

रामायण की एक प्रमुख घटना, जब हनुमान जी ने रावण की स्वर्णमयी नगरी लंका को अपनी पूंछ से आग लगाकर जला दिया था। यह कथा वीरता, बुद्धिमत्ता और अन्याय के प्रतिकार का प्रतीक है।

हनुमान जी द्वारा लंका दहन

पवनपुत्र हनुमान द्वारा रावण की लंका में आग लगाना

सीता की खोज में हनुमान

जब भगवान राम की पत्नी सीता का अपहरण रावण द्वारा कर लिया गया था, तब उन्हें खोजने के लिए हनुमान को लंका भेजा गया। हनुमान जी ने समुद्र को पार कर लंका पहुँचने के लिए विशाल छलांग लगाई। यह एक असाधारण कार्य था, जिसने हनुमान जी की अद्भुत शक्ति और साहस को प्रदर्शित किया।

लंका पहुँचकर, हनुमान जी ने अपने आकार को छोटा कर लिया और रात के समय चुपचाप नगरी में प्रवेश किया। उन्होंने पूरी लंका में सीता माता की खोज की, और अंततः उन्हें अशोक वाटिका में पाया, जहाँ वे रावण के बंदी के रूप में थीं।

हनुमान जी की बुद्धिमत्ता

लंका जैसे सुरक्षित और सतर्क नगर में प्रवेश करना, सीता माता को खोजना और फिर रावण की सेना का सामना करना - ये सब हनुमान जी की बुद्धिमत्ता और रणनीतिक सोच को दर्शाते हैं। हनुमान अपने बल के साथ-साथ बुद्धि के लिए भी जाने जाते हैं।

हनुमान का पकड़ा जाना

सीता माता से मिलने के बाद, हनुमान ने रावण के अशोक वाटिका के कुछ पेड़ों को उखाड़ फेंका और राक्षसों का वध किया। इस हलचल पर, रावण ने अपने पुत्र इंद्रजीत (मेघनाथ) को हनुमान को पकड़ने के लिए भेजा।

इंद्रजीत ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करके हनुमान को बांध लिया। हनुमान जानते थे कि ब्रह्मास्त्र का सम्मान करना चाहिए, इसलिए उन्होंने स्वयं को पकड़े जाने दिया। यह हनुमान के धर्म के प्रति सम्मान और उनकी समझदारी को दर्शाता है।

रावण के दरबार में हनुमान

हनुमान को बंधकर रावण के दरबार में लाया गया। वहां रावण ने हनुमान से उनके लंका आने के उद्देश्य के बारे में पूछा। हनुमान ने निडरता से राम का दूत होने की बात स्वीकार की और रावण को सीता को वापस करने और राम से क्षमा मांगने की सलाह दी।

रावण हनुमान की इस साहसपूर्ण बात से क्रोधित हो गया और उसने हनुमान को मृत्युदंड देने का विचार किया। तभी रावण के छोटे भाई विभीषण ने कहा कि दूत का वध करना उचित नहीं है, इसलिए हनुमान को अन्य प्रकार से दंडित किया जाना चाहिए।

"हनुमान का यह वाक्य कि 'राम नाम लेते ही बंधन टूट जाते हैं' दर्शाता है कि भक्ति की शक्ति किसी भी बंधन से बड़ी है।"

हनुमान की पूंछ में आग

रावण ने तब हनुमान की पूंछ में आग लगाने का निर्णय लिया, क्योंकि वानरों के लिए उनकी पूंछ बहुत महत्वपूर्ण होती है। राक्षसों ने हनुमान की पूंछ पर तेल डालकर उसमें आग लगा दी।

परंतु इससे हनुमान को कोई हानि नहीं हुई। उन्होंने अपनी योगशक्ति से स्वयं को जलने से बचाया और सोचा कि इस अग्नि का उपयोग पूरी लंका को जलाने के लिए किया जा सकता है। यह हनुमान की तुरंत स्थिति का लाभ उठाने की क्षमता को दर्शाता है।

अग्नि का प्रतीक

हनुमान की जलती पूंछ अन्याय के विरुद्ध क्रांति का प्रतीक बन गई। यह दर्शाती है कि जब अत्याचारी शक्तियां निर्दोष को हानि पहुंचाने का प्रयास करती हैं, तो वही उनके विनाश का कारण बन जाती है। अग्नि शुद्धि और परिवर्तन का भी प्रतीक है।

लंका दहन

बंधनों से मुक्त होकर, हनुमान ने अपने आकार को बढ़ाया और अपनी जलती पूंछ से लंका के महलों, भवनों और राजप्रासादों को जलाना आरंभ कर दिया। वे एक भवन से दूसरे भवन पर कूदते गए और पूरी लंका में आग फैला दी।

पूरी लंका में आग का तांडव मच गया। स्वर्ण से निर्मित भवन और महल धू-धू करके जलने लगे। लंका के निवासी भयभीत होकर इधर-उधर भागने लगे। रावण का अहंकार और उसकी अजेय लंका की धज्जियां उड़ गईं।

हालांकि, हनुमान ने सावधानी बरती कि जहां सीता माता थीं, वह अशोक वाटिका आग से बच जाए। यह उनकी विवेकशीलता और अपने मिशन के प्रति जागरूकता को दर्शाता है।

लंका दहन का संदेश

लंका दहन की कथा कई महत्वपूर्ण संदेश देती है। यह दर्शाती है कि अन्याय और अत्याचार का अंत अवश्य होता है। रावण जैसे शक्तिशाली राजा का अहंकार, एक भक्त की भक्ति और समर्पण के सामने टिक नहीं पाया।

इसके अलावा, यह कथा हनुमान जी की बुद्धिमत्ता, वीरता और भक्ति को प्रकट करती है। उन्होंने अपने स्वामी राम के कार्य के लिए अपने जीवन को जोखिम में डाला, परंतु अपनी बुद्धिमत्ता से हर परिस्थिति का सामना किया।

आधुनिक संदर्भ में लंका दहन

आज के समय में, लंका दहन की कथा हमें सिखाती है कि अन्याय का विरोध करना चाहिए। यह हमें प्रेरित करती है कि हम भी अपने जीवन में सत्य और न्याय के लिए खड़े हों। साथ ही, यह बताती है कि विपरीत परिस्थितियों में भी बुद्धिमत्ता और धैर्य से काम लेना चाहिए।

हनुमान का वापस लौटना

लंका को जलाने के बाद, हनुमान ने समुद्र में डुबकी लगाई, अपनी पूंछ की आग बुझाई और वापस राम के पास लौट गए। उन्होंने राम को सीता के मिलने और लंका दहन की पूरी कथा सुनाई।

राम अपने भक्त हनुमान के इस साहसिक कार्य से बहुत प्रसन्न हुए। लंका दहन ने रावण को एक संदेश दिया कि राम और उनकी सेना के सामने उसकी सारी शक्ति व्यर्थ है। यह रावण के विनाश का पहला कदम था, जिसके बाद राम ने उससे युद्ध किया और अंततः उसका वध किया।

निष्कर्ष

लंका दहन की कथा हनुमान जी की वीरता, बुद्धिमत्ता और भक्ति का प्रतीक है। यह दर्शाती है कि भक्ति की शक्ति किसी भी भौतिक शक्ति से बड़ी होती है। हनुमान ने अपने स्वामी के कार्य के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया, और इसी कारण वे आज भी भक्ति, समर्पण और वीरता के प्रतीक के रूप में पूजे जाते हैं।

यह कथा हमें सिखाती है कि जीवन में कभी भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और विपरीत परिस्थितियों में भी बुद्धिमत्ता से काम लेना चाहिए। साथ ही, यह भी सिखाती है कि अन्याय का विरोध करना और सत्य का साथ देना हमारा कर्तव्य है।

धार्मिक महत्व

हनुमान जी की लंका दहन की कथा रामायण के सुंदरकांड में वर्णित है। यह कथा हर साल हनुमान जयंती और रामनवमी के अवसर पर विशेष रूप से याद की जाती है।

मंदिरों में और धार्मिक अनुष्ठानों में, लंका दहन का चित्रण और मंचन किया जाता है। हनुमान चालीसा में भी "जलत कियो लंका सागरी" पंक्ति द्वारा इस घटना का उल्लेख है।

लंका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है, और यह हमें सिखाता है कि भक्ति और समर्पण के सामने कोई भी शक्ति टिक नहीं सकती।