हनुमान और सूर्य: जब बालक हनुमान ने सूरज को फल समझा
यह कथा हनुमान जी के बाल्यकाल की है, जब उनमें अपनी शक्ति का ज्ञान नहीं था। अपनी बाल सुलभ जिज्ञासा और अदम्य साहस के कारण, उन्होंने आकाश में चमकते हुए सूर्य को फल समझकर खाने का प्रयास किया। यह घटना न केवल हनुमान की अलौकिक शक्ति को दर्शाती है, बल्कि उनकी शिक्षा के लिए प्राप्त अनेक वरदानों का भी कारण बनी।

बाल हनुमान सूर्य की ओर उड़ते हुए
हनुमान का जन्म और बचपन
हनुमान जी का जन्म वानर राजा केसरी और अंजनी देवी के पुत्र के रूप में हुआ था। उनकी माता अंजनी एक अप्सरा थीं, जिन्हें किसी शाप के कारण वानर योनि में जन्म लेना पड़ा था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, हनुमान वायु देव द्वारा अंजनी के गर्भ में स्थापित किए गए थे, इसलिए उन्हें पवनपुत्र या मारुति भी कहा जाता है।
जन्म से ही हनुमान असाधारण थे। उनमें अद्भुत शक्ति और चपलता थी। बचपन से ही, वे अपनी शक्ति और क्षमताओं से अनजान थे, लेकिन उनमें अत्यधिक जिज्ञासा और साहस था। वे हर चीज़ के बारे में जानना चाहते थे और बिना किसी भय के नई खोज करते थे।
भूख का अनुभव और सूर्य की ओर उड़ान
एक प्रातः, जब सूर्य उदय हो रहा था, बाल हनुमान ने आकाश में चमकते हुए सूर्य को देखा। उनकी बाल सुलभ जिज्ञासा जाग उठी और उन्होंने सोचा कि यह कोई सुनहरा फल है। उस समय वे भूखे थे और उन्हें लगा कि यह फल उनकी भूख मिटाने के लिए उपयुक्त होगा।
बिना किसी द्वितीय विचार के, हनुमान आकाश की ओर उड़ गए। उनके पंख नहीं थे, फिर भी वे उड़ सकते थे, क्योंकि उनमें वायु देव की शक्ति थी। वे तेजी से सूर्य की ओर बढ़े, जिससे देवता और ऋषि-मुनि आश्चर्यचकित रह गए।
हनुमान की अलौकिक शक्ति
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, बाल हनुमान की गति इतनी तेज थी कि वे सूर्य की ओर बढ़ते समय राहु से भी तेज थे। राहु, जो सूर्य को ग्रहण के समय ग्रसने का प्रयास करता है, भी हनुमान की गति देखकर चकित रह गया। यह हनुमान की अलौकिक शक्ति का प्रमाण है, जो बचपन से ही उनमें मौजूद थी, भले ही उन्हें इसका ज्ञान नहीं था।
देवताओं की चिंता और इंद्र का हस्तक्षेप
जब हनुमान सूर्य के समीप पहुंचे, तो देवताओं को चिंता हुई। यदि हनुमान सूर्य को निगल जाते, तो संपूर्ण ब्रह्मांड अंधकार में डूब जाता। इससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाता और जीवन की सभी गतिविधियां रुक जातीं।
इस स्थिति को देखकर, इंद्रदेव, जो देवताओं के राजा हैं, ने हस्तक्षेप किया। उन्होंने अपने वज्र से हनुमान पर प्रहार किया। इंद्र के वज्र से आहत होकर, हनुमान पृथ्वी की ओर गिरने लगे और उनका निचला जबड़ा घायल हो गया।
वायु देव का प्रकोप
जब वायु देव को पता चला कि उनके पुत्र को इंद्र ने घायल कर दिया है, तो वे अत्यंत क्रोधित हुए। वायु देव ने अपनी गति को रोक दिया, जिससे सभी प्राणियों के प्राणवायु का प्रवाह बंद हो गया। संपूर्ण ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया क्योंकि बिना वायु के जीवन संभव नहीं है।
देवताओं ने वायु देव को मनाने का प्रयास किया, लेकिन वे अपने पुत्र के प्रति किए गए अन्याय से व्यथित थे। उन्होंने कहा कि जब तक उनके पुत्र को न्याय नहीं मिलेगा, वे अपनी सेवाएँ बहाल नहीं करेंगे। इस प्रकार, सभी देवताओं ने ब्रह्मा देव से सहायता मांगी।
देवताओं द्वारा वरदान
ब्रह्मा देव ने वायु देव से बात की और उन्हें समझाया कि इंद्र ने हनुमान पर प्रहार ब्रह्मांड के हित में किया था। साथ ही, उन्होंने वायु देव को आश्वासन दिया कि उनके पुत्र को विशेष वरदान प्राप्त होंगे।
इसके बाद, सभी देवताओं ने हनुमान को विभिन्न वरदान दिए। ब्रह्मा ने उन्हें अमरता का वरदान दिया, यानी कि वे किसी भी शस्त्र से न मारे जा सकें। शिव ने उन्हें अजेयता का वरदान दिया, जिससे वे किसी भी युद्ध में पराजित न हों। वरुण ने उन्हें जल से कभी न मरने का वरदान दिया।
इंद्र ने, जिन्होंने हनुमान को घायल किया था, उन्हें वज्र से अभेद्य होने का वरदान दिया। वायु देव ने अपने पुत्र को अपने समान गति से चलने का वरदान दिया। यम ने उन्हें कभी बीमार न होने का वरदान दिया।
कुबेर ने हनुमान को धन और समृद्धि का वरदान दिया। विश्वकर्मा ने उन्हें अपने निर्मित शस्त्रों से न मरने का वरदान दिया। सूर्य देव, जिन्हें हनुमान ने फल समझकर खाने का प्रयास किया था, ने उन्हें अपने समान तेज और अपने एक अंश के बराबर ज्ञान का वरदान दिया।
सूर्य से शिक्षा
सभी वरदानों में सबसे महत्वपूर्ण था सूर्य देव से प्राप्त ज्ञान का वरदान। सूर्य ने हनुमान को अपना शिष्य बनाने का निर्णय लिया और उन्हें सभी शास्त्रों का ज्ञान देने का वचन दिया।
हालांकि, हनुमान ने एक समस्या का उल्लेख किया। वे कहने लगे, "भगवान, आप तो निरंतर गतिशील हैं, मैं आपके साथ कैसे चलूंगा और आपसे शिक्षा कैसे प्राप्त करूंगा?" सूर्य ने उत्तर दिया, "मैं अपनी गति को धीमा नहीं कर सकता, लेकिन तुम अपने मुख को पूर्व दिशा की ओर और अपनी पीठ को पश्चिम दिशा की ओर करके चलोगे। इस प्रकार, तुम हमेशा मेरे सामने रहोगे और मुझसे शिक्षा प्राप्त कर सकोगे।"
इस प्रकार, हनुमान ने सूर्य से सभी शास्त्रों और विद्याओं का ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने वेद, उपनिषद, व्याकरण, ज्योतिष, आयुर्वेद, और अन्य सभी विषयों का गहन अध्ययन किया।
शाप: शक्ति का अज्ञान
हनुमान के शिक्षा पूर्ण होने के बाद, ब्रह्मा देव ने उन्हें एक दूसरा वरदान दिया, जो वास्तव में एक शाप था। उन्होंने कहा कि हनुमान को अपनी शक्तियों का ज्ञान तभी होगा जब कोई उन्हें याद दिलाएगा। इसका कारण यह था कि अगर हनुमान को अपनी सभी शक्तियों का ज्ञान रहता, तो वे बहुत अधिक उद्दंड हो सकते थे।
यही कारण है कि जब राम के कार्य के लिए जामवंत ने हनुमान को उनकी शक्तियों की याद दिलाई, तभी वे समुद्र को लांघकर लंका जा सके। इस प्रकार, सूर्य को फल समझकर खाने का प्रयास करने वाली यह घटना न केवल हनुमान की शक्ति का प्रदर्शन है, बल्कि उनके जीवन के महत्वपूर्ण मोड़ का भी कारण बनी।
"हनुमान की सूर्य से मुलाकात की कथा हमें सिखाती है कि किसी भी परिस्थिति में, चाहे वह कितनी भी विपरीत क्यों न हो, अंततः वह हमारे लिए लाभकारी हो सकती है। हनुमान का सूर्य को खाने का प्रयास, जो एक गलती थी, अंततः उनके लिए अनेक वरदानों और ज्ञान का कारण बना।"
कथा का सन्देश
हनुमान और सूर्य की कथा हमें कई महत्वपूर्ण सीख देती है। पहली सीख यह है कि हमें अपनी क्षमताओं का सही उपयोग करना चाहिए। हनुमान के पास असीम शक्ति थी, लेकिन उन्हें इसका ज्ञान नहीं था। जब उन्हें इसका ज्ञान हुआ, तो उन्होंने इसका उपयोग भगवान राम की सेवा में किया।
दूसरी सीख यह है कि हमें अपनी गलतियों से सीखना चाहिए। हनुमान ने सूर्य को फल समझकर खाने की गलती की, लेकिन इसी गलती से उन्हें अनेक वरदान और ज्ञान प्राप्त हुआ।
तीसरी सीख यह है कि सच्चा ज्ञान हमेशा विनम्रता से आता है। हनुमान ने सूर्य से विनम्रतापूर्वक शिक्षा प्राप्त की और वे अपने ज्ञान के लिए प्रसिद्ध हुए।
अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण सीख यह है कि शक्ति के साथ जिम्मेदारी भी आती है। हनुमान ने अपनी शक्ति का उपयोग हमेशा दूसरों की भलाई के लिए किया, कभी भी स्वार्थ के लिए नहीं।
संबंधित कथाएँ
हनुमान पूजा में सूर्य नमस्कार
हनुमान जी की पूजा में सूर्य नमस्कार का विशेष महत्व है। यह इस कथा से जुड़ा है, जिसमें हनुमान ने सूर्य से शिक्षा प्राप्त की थी। ऐसा माना जाता है कि हनुमान जी की पूजा से पहले सूर्य नमस्कार करने से दोगुना फल प्राप्त होता है।
मंगलवार और शनिवार को हनुमान जी की विशेष पूजा की जाती है, और इन दिनों पर की गई पूजा अतिरिक्त फलदायी मानी जाती है। हनुमान चालीसा का पाठ करते समय सिंदूर से रंजित हनुमान जी की प्रतिमा के सामने एक दीप जलाना शुभ माना जाता है, जो सूर्य देव का प्रतीक है।
हनुमान जी को 'सूर्यपुत्र' के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने सूर्य से ज्ञान प्राप्त किया था। इसलिए, कई लोग सूर्योदय के समय हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं, जिससे दोनों देवताओं की कृपा एक साथ प्राप्त होती है।