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असुर वध|पढ़ने का समय: 8 मिनट

अंधक वध: अंधकार से प्रकाश की यात्रा

यह कहानी है अंधक नामक असुर के वध की, जिसे भगवान शिव ने अपने त्रिशूल पर धारण करके उसका वध किया और फिर उसे अपना गण बना लिया। यह कथा अहंकार के विनाश और भक्ति की शक्ति का प्रतीक है।

अंधक वध

भगवान शिव द्वारा अंधकासुर का वध

अंधक का जन्म

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब शिव और पार्वती क्रीड़ा कर रहे थे, तब शिवजी के पसीने की एक बूंद धरती पर गिर गई। इस पसीने से एक अंधा दानव उत्पन्न हुआ, जिसे अंधक कहा गया। कुछ अन्य पौराणिक कथाओं के अनुसार, अंधक हिरण्याक्ष का पुत्र था, जिसे विष्णु ने वराह अवतार में मारा था।

अंधक का पालन-पोषण हिरण्याक्ष ने किया। हिरण्याक्ष को अंधक से बहुत लगाव था, क्योंकि वह अंधा था और उसे विशेष देखभाल की आवश्यकता थी। हिरण्याक्ष के अनुसार, अंधक एक दिन असुरों का राजा बनेगा और देवताओं को पराजित करेगा।

अंधक की तपस्या और वरदान

जब अंधक बड़ा हुआ, तो उसे अपनी अंधता से मुक्ति पाने की इच्छा हुई। उसने ब्रह्मा की कठोर तपस्या आरंभ की, जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा।

अंधक ने मांगा कि उसे दृष्टि मिले और वह अमर हो जाए। ब्रह्मा ने उसे दृष्टि दी, लेकिन अमरता का वरदान देने से इनकार कर दिया, क्योंकि यह प्रकृति के नियमों के विरुद्ध था। इसके बजाय, ब्रह्मा ने उसे एक विशेष वरदान दिया कि वह केवल उसी स्थिति में मरेगा जब वह किसी स्त्री के प्रति कामुक भावना रखेगा और उस स्त्री का पति उसका वध करेगा।

अंधक इस वरदान से बहुत प्रसन्न हुआ, क्योंकि उसे लगा कि वह कभी भी किसी स्त्री के प्रति कामुक नहीं होगा और इस प्रकार वह अमर रहेगा।

अंधक का अहंकार

वरदान पाने के बाद, अंधक बहुत शक्तिशाली और अहंकारी हो गया। वह पाताल लोक का राजा बन गया और सभी असुरों का नेता बन गया। उसने देवताओं पर आक्रमण करना शुरू कर दिया और उन्हें पराजित करने लगा। उसके अत्याचार से त्रस्त होकर, देवताओं ने शिव की शरण ली और उनसे अंधक का वध करने की प्रार्थना की।

अंधक की पार्वती के प्रति आसक्ति

एक दिन, अंधक कैलाश पर्वत की ओर गया, जहां शिव और पार्वती निवास करते थे। वहां उसने पार्वती को देखा और उनके सौंदर्य पर मोहित हो गया। उसने पार्वती को प्राप्त करने का निश्चय किया, भूलकर कि ब्रह्मा के वरदान के अनुसार, यही उसकी मृत्यु का कारण बनेगा।

अंधक ने शिव को युद्ध के लिए ललकारा और कहा कि वह पार्वती को अपने साथ ले जाएगा। शिव, जो अपनी पत्नी पार्वती से अत्यधिक प्रेम करते थे, अंधक के इस दुस्साहस से क्रोधित हो गए और युद्ध के लिए तैयार हो गए।

अंधक और शिव का युद्ध

शिव और अंधक के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अंधक के पास अद्भुत शक्तियां थीं, जिससे वह शिव के अनेक हमलों का सामना कर सका। जब भी शिव उसे घायल करते, उसके रक्त की प्रत्येक बूंद से एक नया अंधक उत्पन्न हो जाता, जिससे युद्ध और भी कठिन हो गया।

शिव समझ गए कि इस प्रकार अंधक का वध नहीं किया जा सकता। तब उन्होंने अपनी शक्ति का आह्वान किया और देवी काली को उत्पन्न किया। काली ने अंधक के रक्त की हर बूंद को पी लिया, जिससे नए अंधक उत्पन्न नहीं हो सके।

अंततः, शिव ने अपने त्रिशूल से अंधक को बेध दिया और उसे त्रिशूल पर उठा लिया। लेकिन अंधक अभी भी जीवित था, और उसका रक्त काली द्वारा पीया जा रहा था।

अंधक का हृदय परिवर्तन

त्रिशूल पर टंगा हुआ, अंधक ने शिव की शक्ति और करुणा का अनुभव किया। वह अपने पापों पर पश्चाताप करने लगा और शिव की स्तुति करने लगा। उसने अपने अहंकार को त्याग दिया और शिव से क्षमा याचना की।

शिव, जो आत्मदान और पश्चाताप से प्रसन्न होते हैं, अंधक की भक्ति से प्रभावित हुए। उन्होंने उसे क्षमा कर दिया और उसे अपना गण बना लिया। इस प्रकार, अंधक, जो पहले एक क्रूर असुर था, अब शिव का भक्त और सेवक बन गया।

अंधक का शिव-गण बनना

अंधक को शिव का गण बनाकर, शिव ने उसे 'भृंगी' नाम दिया। भृंगी शिव के सबसे वफादार गणों में से एक बन गया और हमेशा उनकी सेवा में रहने लगा। उसे विशेष रूप से शिव की आराधना करने और उनके गणों का नेतृत्व करने का कार्य सौंपा गया।

भृंगी का चरित्र बदल गया और वह अपने पूर्व जीवन के पापों के लिए प्रायश्चित करने लगा। उसने शिव और पार्वती की अथक सेवा की और उनकी भक्ति में लीन हो गया।

"अंधक की कहानी हमें सिखाती है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी पापी क्यों न हो, यदि वह सच्चे हृदय से पश्चाताप करता है और भक्ति का मार्ग अपनाता है, तो उसे मुक्ति मिल सकती है। शिव की करुणा असीम है और वे सभी को क्षमा करते हैं जो उनकी शरण में आते हैं।"

कहानी का सार

अंधक वध की कहानी हमें अनेक महत्वपूर्ण सीख देती है। पहली सीख यह है कि अहंकार विनाश का कारण बनता है। अंधक अपने वरदान और शक्ति के कारण अहंकारी हो गया था, जिससे उसका पतन हुआ।

दूसरी सीख यह है कि सच्ची भक्ति और पश्चाताप से किसी भी व्यक्ति का उद्धार हो सकता है। अंधक, जो एक क्रूर असुर था, शिव की भक्ति से उनका प्रिय गण बन गया।

तीसरी सीख यह है कि ईश्वर की करुणा असीम है। शिव ने अंधक को न केवल क्षमा किया, बल्कि उसे अपना गण बनाकर उसे सम्मान भी दिया।

अंधक वध की कहानी अंधकार से प्रकाश की यात्रा का प्रतीक है। यह दर्शाती है कि कैसे एक व्यक्ति अपने पापों और अहंकार के अंधकार से निकलकर भक्ति और सेवा के प्रकाश में पहुंच सकता है।

कला और पूजा में अंधक

अंधक वध का दृश्य भारतीय कला में अक्सर चित्रित किया जाता है। इसमें शिव को अपने त्रिशूल पर अंधक को उठाए हुए दिखाया जाता है, जबकि काली उसके रक्त को पी रही होती है। यह दृश्य पाप पर धर्म की विजय का प्रतीक है।

दक्षिण भारत के कई शिव मंदिरों में, अंधक को शिव के गण भृंगी के रूप में पूजा जाता है। भृंगी को अक्सर एक पैर वाले व्यक्ति के रूप में चित्रित किया जाता है, जो शिव और पार्वती के प्रति अपनी भक्ति के कारण इस रूप में हैं।

अंधक वध की कहानी हिंदू धर्म में पाप, प्रायश्चित और मुक्ति के विचारों को समझाने के लिए अक्सर उपयोग की जाती है। यह कहानी सिखाती है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी पापी क्यों न हो, भक्ति के मार्ग से मुक्ति पा सकता है।