नारायण और लक्ष्मी - दिव्य जोड़ी की कथा

भगवान विष्णु (नारायण) और देवी लक्ष्मी क्षीरसागर में शेषनाग पर विराजमान
भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का दिव्य संबंध हिन्दू धर्म के मूल आधारों में से एक है। विष्णु पालनहार हैं और लक्ष्मी धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी हैं। दोनों के संयुक्त रूप को 'लक्ष्मी-नारायण' के नाम से जाना जाता है।
लक्ष्मी का जन्म और प्रथम मिलन
सबसे प्रसिद्ध कथा के अनुसार, माता लक्ष्मी का जन्म समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। जब देवताओं और असुरों ने क्षीरसागर का मंथन किया, तब अनेक रत्नों के साथ एक स्वर्णिम कमल पर बैठी अत्यंत सुंदर देवी प्रकट हुईं। ये देवी लक्ष्मी थीं, जिन्होंने तुरंत ही भगवान विष्णु को अपना पति चुन लिया और उन्हें वरमाला पहना दी।
इस कथा में, यह भी कहा जाता है कि लक्ष्मी को 'श्री' भी कहा जाता है, जो समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक हैं। उन्होंने विष्णु को अपना पति इसलिए चुना क्योंकि वे निस्वार्थ, धर्मप्रेमी और सभी प्राणियों के कल्याण का भाव रखने वाले थे।
"यत्र नारायणः देवः तत्र श्रीः वसते सदा।
यत्र लक्ष्मीः तत्र हरिः वसते नात्र संशयः॥"
"जहाँ नारायण (विष्णु) हैं, वहीं श्री (लक्ष्मी) निवास करती हैं। और जहाँ लक्ष्मी हैं, वहीं हरि (विष्णु) निवास करते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है।" - पद्म पुराण
पुनर्जन्म और अवतारों में साथ
हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भी भगवान विष्णु किसी अवतार में पृथ्वी पर आते हैं, तब लक्ष्मी भी उनके साथ किसी न किसी रूप में अवतरित होती हैं। इन अवतारों में लक्ष्मी के विभिन्न रूप निम्नलिखित हैं:
- राम अवतार - जब विष्णु राम के रूप में अवतरित हुए, तब लक्ष्मी सीता के रूप में उनकी पत्नी बनीं।
- कृष्ण अवतार - कृष्ण अवतार में लक्ष्मी राधा और रुक्मिणी के रूप में थीं। राधा कृष्ण की प्रेमिका थीं, जबकि रुक्मिणी उनकी पटरानी थीं।
- परशुराम अवतार - इस अवतार में लक्ष्मी धरती माता के रूप में थीं।
- वामन अवतार - वामन अवतार में, लक्ष्मी कमल के रूप में वामन के साथ थीं।
- नरसिंह अवतार - नरसिंह अवतार में, लक्ष्मी को कमला के नाम से जाना जाता था।
लक्ष्मी के अष्ट रूप
हिन्दू धर्म में लक्ष्मी के आठ रूप (अष्ट लक्ष्मी) माने जाते हैं, जो विभिन्न प्रकार की समृद्धि और सौभाग्य को दर्शाते हैं:
- आदि लक्ष्मी - मूल लक्ष्मी, सभी सौभाग्य का स्रोत
- धान्य लक्ष्मी - अनाज और खाद्य पदार्थों की देवी
- धैर्य लक्ष्मी - धैर्य और साहस की देवी
- गज लक्ष्मी - शक्ति, बल और ऐश्वर्य की देवी
- संतान लक्ष्मी - संतान सुख की देवी
- विजय लक्ष्मी - विजय और सफलता की देवी
- विद्या लक्ष्मी - ज्ञान और बुद्धि की देवी
- धन लक्ष्मी - धन और संपत्ति की देवी
क्षीरसागर में निवास
हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का मुख्य निवास क्षीरसागर (दूध का सागर) है। वहाँ वे शेषनाग (अनंत) की शैय्या पर विराजमान रहते हैं। शेषनाग अपने हजारों फणों से विष्णु और लक्ष्मी को छाया प्रदान करता है।
विष्णु योगनिद्रा में लीन रहते हैं और उनके नाभि कमल से ब्रह्मा जी प्रकट होते हैं, जो सृष्टि की रचना करते हैं। लक्ष्मी विष्णु के चरणों की सेवा करती हैं और उनके साथ इस दिव्य निवास में रहती हैं।
वैकुंठ का राज्य
वैकुंठ भगवान विष्णु का परम धाम है, जहाँ वे लक्ष्मी के साथ राज्य करते हैं। वैकुंठ, जिसे "विष्णु लोक" भी कहा जाता है, स्वर्ग से भी ऊपर स्थित है और यह अनंत आनंद का स्थान है।
वैकुंठ में भगवान विष्णु चतुर्भुजी रूप में दर्शन देते हैं, जिनके चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म होते हैं। लक्ष्मी जी उनके बाईं ओर विराजमान रहती हैं और गरुड़ उनका वाहन है। वहाँ नित्य लीला होती रहती है और मुक्त आत्माएँ भगवान की सेवा में लीन रहती हैं।
विष्णु की शक्ति के रूप में लक्ष्मी
हिन्दू दर्शन में, लक्ष्मी को विष्णु की 'शक्ति' के रूप में देखा जाता है। शक्ति का अर्थ है ऊर्जा या कार्य करने की क्षमता। विष्णु निष्क्रिय तत्व हैं, जबकि लक्ष्मी सक्रिय ऊर्जा हैं। दोनों के संयोग से ही सृष्टि का संचालन होता है।
यह विचार श्री वैष्णव संप्रदाय में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहाँ लक्ष्मी को 'पुरुषोत्तम' विष्णु और जीवों के बीच मध्यस्थ माना जाता है। लक्ष्मी अपने भक्तों की प्रार्थना सुनकर उन्हें विष्णु तक पहुँचाती हैं और उनके लिए कृपा प्राप्त करती हैं।
दिव्य विवाह की कथाएँ
विष्णु और लक्ष्मी के विवाह की अनेक कथाएँ हिन्दू पुराणों में मिलती हैं। एक कथा के अनुसार, लक्ष्मी ने स्वयंवर का आयोजन किया, जिसमें विभिन्न देवताओं और राजाओं ने भाग लिया। लक्ष्मी ने विष्णु के गुणों से प्रभावित होकर उन्हें वरमाला पहनाई।
एक अन्य कथा के अनुसार, भृगु ऋषि ने त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की परीक्षा ली। उन्होंने विष्णु के सीने पर पैर रख दिया, जिस पर विष्णु ने क्रोध न करके भृगु के पैर दबाना शुरू कर दिया, यह कहते हुए कि उनका पैर दुखा होगा। इस निस्वार्थ व्यवहार से प्रसन्न होकर लक्ष्मी ने विष्णु को अपना पति चुना।
नारायण और लक्ष्मी की पूजा
लक्ष्मी-नारायण की संयुक्त पूजा हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह माना जाता है कि लक्ष्मी की कृपा से ही धन और समृद्धि मिलती है, और विष्णु की कृपा से धर्म और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
विशेष रूप से दीपावली के अवसर पर, हिन्दू परिवार लक्ष्मी-नारायण की पूजा करते हैं और घर में समृद्धि और सुख-शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। अनेक मंदिरों में भी लक्ष्मी-नारायण की युगल मूर्तियां स्थापित हैं, जहाँ श्रद्धालु दर्शन और पूजा के लिए जाते हैं।
उपसंहार - आदर्श दांपत्य
नारायण और लक्ष्मी का संबंध हिन्दू धर्म में आदर्श दांपत्य का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि पुरुष और स्त्री एक-दूसरे के पूरक हैं और दोनों के सहयोग से ही जीवन में सफलता और सुख प्राप्त होता है।
इस दिव्य जोड़ी की कथा हमें यह शिक्षा देती है कि प्रेम, समर्पण और एक-दूसरे के प्रति निष्ठा ही सफल दांपत्य जीवन का आधार है। साथ ही, यह कथा यह भी दर्शाती है कि धन और समृद्धि (लक्ष्मी) तभी स्थायी होती है, जब उसके साथ धर्म और नैतिकता (विष्णु) का पालन किया जाए।
तुलसीदास का दोहा
गोस्वामी तुलसीदास ने विष्णु (राम) और लक्ष्मी (सीता) के संबंध पर अपने महाकाव्य "रामचरितमानस" में सुंदर दोहे लिखे हैं:
करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।
जाके प्रिय न राम-वैदेही,
सो नर तृण समान अति नीची॥"
अर्थात्: "मैं सारे जगत को सीता और राम के रूप में जानकर, दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ। जिस मनुष्य को राम और सीता प्रिय नहीं हैं, वह तिनके के समान अति नीच है।"
संबंधित कथाएँ
सांस्कृतिक संदर्भ
श्री सूक्त - लक्ष्मी की स्तुति
वैदिक काल से ही लक्ष्मी की महिमा का वर्णन मिलता है। ऋग्वेद के 'श्री सूक्त' में लक्ष्मी की स्तुति की गई है। इसमें लक्ष्मी को समृद्धि, सौभाग्य और वैभव की देवी के रूप में वर्णित किया गया है। इस सूक्त का पाठ आज भी लक्ष्मी पूजा में किया जाता है।
मंदिरों में लक्ष्मी-नारायण
भारत के अनेक प्रसिद्ध मंदिरों में लक्ष्मी-नारायण की युगल मूर्तियां स्थापित हैं। उत्तर प्रदेश के बद्रीनाथ मंदिर, गुजरात के द्वारका मंदिर, और अनेक वैष्णव मंदिरों में लक्ष्मी-नारायण की भव्य मूर्तियां दर्शनीय हैं। इन मंदिरों में विशेष अवसरों पर लक्ष्मी-नारायण का विवाह उत्सव भी मनाया जाता है।
समकालीन महत्व
आज के समय में भी, लक्ष्मी-नारायण की पूजा धन, समृद्धि और सुख-शांति के लिए की जाती है। व्यापारी अपने व्यवसाय की वृद्धि के लिए, गृहिणियां घर की समृद्धि के लिए, और विद्यार्थी सफलता के लिए इस दिव्य जोड़ी की आराधना करते हैं। दीपावली पर तो विशेष रूप से लक्ष्मी-नारायण की पूजा होती है, जिससे नए वर्ष में सुख-समृद्धि आए।