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वामन अवतार - तीन पग में त्रिलोक

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वामन अवतार

भगवान विष्णु का वामन अवतार अपने विराट रूप में त्रिलोक को नापते हुए

वामन अवतार, भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों (दशावतार) में पांचवां अवतार है। इस अवतार में, विष्णु ने एक छोटे बौने ब्राह्मण का रूप धारण किया और बलि राजा से तीन पग भूमि दान में मांगकर त्रिलोक नाप लिया।

कथा का प्रारंभ - बलि का उदय

प्राचीन काल में, प्रह्लाद के पौत्र और विरोचन के पुत्र राजा बलि, असुरों के राजा थे। बलि एक महान शासक थे, जो धर्म और न्याय का पालन करते थे। अपनी तपस्या, दान और धार्मिक कार्यों के कारण, उन्होंने अपार शक्ति और समृद्धि प्राप्त की थी।

बलि इतने शक्तिशाली हो गए थे कि उन्होंने देवताओं को पराजित कर दिया और तीनों लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल) पर अधिकार जमा लिया। इससे देवता बहुत चिंतित हुए और वे सहायता के लिए भगवान विष्णु के पास गए।

"हे विष्णु! बलि की शक्ति अपार है और उसने हमारा राज्य छीन लिया है।
हमारी रक्षा करें और हमें पुनः स्वर्ग प्राप्त कराएँ।"

- देवताओं की विष्णु से प्रार्थना

अदिति के गर्भ से वामन का जन्म

देवताओं की प्रार्थना सुनकर, भगवान विष्णु ने कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के गर्भ से जन्म लेने का निर्णय लिया। अदिति ने कठोर तपस्या की और विष्णु ने उनके पुत्र के रूप में जन्म लिया। यही वामन अवतार था।

वामन का अर्थ है 'बौना' या 'छोटा'। जन्म के समय वामन एक छोटे ब्राह्मण बालक के रूप में थे। उन्होंने ब्रह्मचारी का वेश धारण किया - उनके हाथ में एक छत्र और कमंडल था, कंधे पर जनेऊ (यज्ञोपवीत) था, और उनके पास एक दंड था।

वामन के जन्म का महत्व

वामन के जन्म का समय भाद्रपद शुक्ल द्वादशी था, जिसे "वामन द्वादशी" के नाम से जाना जाता है। आज भी इस दिन वामन जयंती मनाई जाती है। कहा जाता है कि इस दिन वामन की पूजा करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

बलि का यज्ञ और वामन का आगमन

एक बार, राजा बलि एक विशाल यज्ञ कर रहे थे, जिसमें वे बड़ी मात्रा में दान दे रहे थे। उन्होंने घोषणा की थी कि वे किसी भी याचक को खाली हाथ नहीं लौटाएंगे।

इसी अवसर पर, वामन यज्ञशाला में पहुंचे। उनके छोटे कद को देखकर सभी आश्चर्यचकित हुए। बलि ने वामन का सम्मानपूर्वक स्वागत किया और पूछा कि वे क्या चाहते हैं।

वामन ने कहा, "हे राजन! मुझे केवल तीन पग भूमि चाहिए, जितनी मेरे पैरों से नापी जा सके।"

यह सुनकर, बलि के गुरु शुक्राचार्य को संदेह हुआ। उन्होंने बलि को चेतावनी दी कि यह बौना ब्राह्मण साधारण नहीं है, बल्कि स्वयं विष्णु है, जो उन्हें धोखा देने आया है। लेकिन बलि ने अपना वचन तोड़ने से इनकार कर दिया।

बलि का वचन

"गुरुदेव, मैंने अपने जीवन में कभी वचन नहीं तोड़ा है। यदि यह स्वयं विष्णु हैं और वे मुझसे राज्य छीनने आए हैं, तो मुझे इससे बड़ा सौभाग्य क्या होगा कि मेरा राज्य भगवान के चरणों से नापा जाए। मैं उनकी मांग स्वीकार करता हूँ।"

तीन पगों में त्रिलोक

जब बलि ने वामन को तीन पग भूमि देने का वचन दिया, तभी वामन ने अपना विराट रूप धारण किया। उनका शरीर इतना विशाल हो गया कि वे आकाश को छूने लगे। सभी लोग इस अद्भुत दृश्य को देखकर आश्चर्यचकित रह गए।

अपने पहले पग से, वामन ने पूरे पृथ्वी लोक को नाप लिया। दूसरे पग से, उन्होंने स्वर्ग लोक नाप लिया। अब तीसरे पग के लिए कोई स्थान नहीं बचा था।

इस पर बलि ने अपना सिर झुकाया और कहा, "हे प्रभु, मेरे पास अब कोई भूमि नहीं बची है। कृपया अपना तीसरा पग मेरे सिर पर रखें।"

वामन ने अपना तीसरा पग बलि के सिर पर रखा और उन्हें पाताल लोक में धकेल दिया। इस प्रकार, वामन ने तीनों लोकों पर पुनः देवताओं का अधिकार स्थापित कर दिया।

बलि को वरदान

बलि की भक्ति, सत्यनिष्ठा और धर्मपरायणता से प्रसन्न होकर, भगवान वामन ने उन्हें वरदान दिया। उन्होंने कहा कि बलि पाताल लोक के राजा बने रहेंगे और भगवान स्वयं उनके द्वारपाल के रूप में रहेंगे।

इसके अतिरिक्त, भगवान ने यह भी वरदान दिया कि प्रत्येक वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को 'ओणम' के रूप में बलि की पृथ्वी पर वापसी का उत्सव मनाया जाएगा, जिसे आज भी केरल में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

ओणम उत्सव

केरल का प्रसिद्ध त्योहार 'ओणम' वामन और बलि की इसी कथा पर आधारित है। यह माना जाता है कि इस दिन राजा बलि अपनी प्रजा से मिलने पृथ्वी पर आते हैं। इस त्योहार के दौरान, लोग अपने घरों को फूलों से सजाते हैं, विशेष भोजन बनाते हैं, और 'पूकलम' (रंगोली) बनाकर बलि का स्वागत करते हैं।

वामन अवतार का ध्येय और महत्व

वामन अवतार की कथा यह दर्शाती है कि अहंकार और अत्यधिक शक्ति का दुरुपयोग अंततः पतन का कारण बनता है। बलि एक अच्छे राजा थे, लेकिन उनके अहंकार के कारण उन्हें अपना राज्य खोना पड़ा।

यह कथा यह भी सिखाती है कि दान और सत्य के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति को अंततः ईश्वर का आशीर्वाद अवश्य मिलता है। बलि ने अपना वचन निभाया और भगवान ने उन्हें सम्मानित किया।

त्रिविक्रम - वामन का दूसरा नाम

वामन अवतार को 'त्रिविक्रम' (तीन पगों वाला) भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने तीन पगों में तीनों लोकों को नाप लिया। अनेक मंदिरों में भगवान विष्णु को त्रिविक्रम रूप में दर्शाया गया है, जहाँ उनका एक पैर ऊपर उठा हुआ है, जिससे उनके तीन पगों से त्रिलोक नापने की लीला का स्मरण होता है।

दक्षिण भारत के अनेक मंदिरों, विशेष रूप से तमिलनाडु के त्रिविक्रम मंदिर और कांचीपुरम के वरदराज पेरुमाल मंदिर में, विष्णु को इसी त्रिविक्रम रूप में पूजा जाता है।

उपसंहार

वामन अवतार की कथा हमें दान का महत्व, सत्य का पालन, और अहंकार के त्याग की शिक्षा देती है। यह दर्शाती है कि भगवान सदैव धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश के लिए अवतार लेते हैं।

आज भी, वामन द्वादशी और ओणम के रूप में इस अवतार की स्मृति मनाई जाती है। इस अवतार से हमें यह शिक्षा मिलती है कि शारीरिक आकार महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि व्यक्ति के चरित्र और कर्म ही उसकी महानता के प्रतीक हैं।

वामन अवतार और पुराण

वामन अवतार की विस्तृत कथा विभिन्न पुराणों, विशेष रूप से भागवत पुराण, विष्णु पुराण और वामन पुराण में मिलती है। वामन पुराण विशेष रूप से इस अवतार को समर्पित है और इसमें वामन के जीवन, कार्यों और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों का विस्तृत वर्णन है।

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सांस्कृतिक संदर्भ

केरल में ओणम

केरल का प्रमुख त्योहार ओणम, वामन अवतार और बलि राजा की कथा पर आधारित है। मलयालम कैलेंडर के अनुसार चिंगम महीने (अगस्त-सितंबर) में मनाए जाने वाले इस दस दिवसीय त्योहार में, लोग मानते हैं कि राजा बलि अपनी प्रजा का हालचाल जानने पृथ्वी पर आते हैं। इस अवसर पर विशेष भोजन, पूकलम (रंगोली), नृत्य (कथकली) और नौकादौड़ का आयोजन किया जाता है।

प्रसिद्ध मंदिर और मूर्तियां

वामन अवतार की पूजा के लिए भारत में कई प्रसिद्ध मंदिर हैं। उत्तराखंड के बद्रीनाथ मंदिर में वामन मूर्ति स्थित है। तमिलनाडु के त्रिविक्रम मंदिर में विष्णु को त्रिविक्रम रूप में दर्शाया गया है, जहाँ उनकी मूर्ति का एक पैर ऊपर की ओर उठा हुआ है। खजुराहो और हम्पी जैसे प्राचीन मंदिरों की दीवारों पर भगवान विष्णु के दृश्य उकेरे गए हैं।

आधुनिक समाज में प्रासंगिकता

वामन अवतार की कथा आज के समय में भी प्रासंगिक है। यह हमें सिखाती है कि अहंकार और लालच का त्याग करना चाहिए, वचन का पालन करना चाहिए, और दान देने का महत्व समझना चाहिए। राजा बलि की तरह, हमें भी अपने वचनों पर अडिग रहना चाहिए, भले ही इसके लिए हमें कुछ त्यागना पड़े। साथ ही, यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि धन और शक्ति के साथ विनम्रता आवश्यक है।